Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चा हर तरफ है। बिहार में जाति एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। बिहार चुनाव में जात के आधार पर वोट किया जाता है। ऐसे में एक बार फिर चर्चा में M-Y समीकरण आ गया है। राजनीति जानकारों का कहना है कि इस बार का एमवाई समीकरण पिछले चुनावों से अलग है। इस बार चुनाव में एम मतलब महिला और वाई मतलब युवा होने जा रहा है। ये दोनों जिसके पक्ष में होंगे, सरकार उसी की बनेगी। पहले से चला आ रहा मुस्लिम और यादव का इस चुनाव में खास असर होता नहीं दिखाई देगा।
बिहार का नया चुनावी समीकरण
बिहार की सियासत में इस बार जो समीकरण सबसे ज्यादा चर्चा में है, वह है महिला और युवा (Mahila-Yuva) का गठजोड़। यह पुराने मुस्लिम-यादव (Muslim-Yadav) समीकरण को एक चुनौती के तौर पर पेश कर रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर जो योजनाएं चलाईं, जैसे बच्चियों को साइकिल बांटना और उनके बैंक खातों में सीधे पैसा भेजना, उसने महिला मतदाताओं के बीच उनकी एक अलग पहचान बनाई है।
पारंपरिक M-Y समीकरण: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक अब भी मजबूत है। हालांकि, नीतीश कुमार ने अपने शासनकाल में सामाजिक न्याय और विकास पर जोर देकर मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग अपनी ओर आकर्षित किया था, लेकिन अब जब वह फिर से भाजपा के साथ हैं, तो मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव एक बार फिर RJD और महागठबंधन की तरफ देखा जा रहा है।
प्रशांत किशोर: किंगमेकर बनने में अभी कई चुनौती
इस बार के चुनाव में पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक नए राजनीतिक दल ‘जन सुराज’ के साथ मैदान में हैं। हालांकि, किंगमेकर बनने का उनका रास्ता आसान नहीं दिख रहा। शांत किशोर का लक्ष्य बिहार की जनता को एनडीए और महागठबंधन के अलावा एक तीसरा विकल्प देना है। वे सीधे तौर पर अति पिछड़े वर्ग और युवाओं को संबोधित कर रहे हैं, जो नीतीश कुमार का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। हालांकि, प्रशांत किशोर के लिए बिहार की राह आसान नहीं है। भले ही वो अपने दम पर सरकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं लेकिन अभी उनको बहुत कुछ करना है। हां, वो वोट काटकर जरूर किसी खास पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
PK का “जन सुराज” क्या खेल बिगाड़ सकता है?
प्रशांत किशोर (PK) पहले चुनावी रणनीतिकार के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने मोदी, नीतीश, ममता बनर्जी और जगन रेड्डी जैसे नेताओं को चुनाव जिताने में मदद की। अब वे खुद “जन सुराज पार्टी” (JSP) बनाकर मैदान में उतर चुके हैं। पिछले दो साल से PK बिहार के गांव-गांव घूम रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं, पंचायत स्तर पर संगठन बना रहे हैं। उनका नारा है — 👉 “जनता की सरकार, जनता के हाथ में।” पीके का युवाओं और शिक्षित वर्ग में उनका अच्छा प्रभाव दिख रहा है। ऐसे में अगर RJD और NDA दोनों को सीटें कम मिलती हैं, तो जन सुराज जैसे दल सत्ता बनाने की कुंजी बन सकते हैं।
जनता का मूड क्या कहता है?
ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि बिहार में इस बार “चेंज” की चर्चा ज़रूर है, लेकिन कोई एक लहर नहीं दिख रही। युवाओं में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है, जबकि किसानों और गरीब वर्ग में महंगाई को लेकर नाराज़गी है। बिहार के लोग अब विकास चाहते हैं, जातीय राजनीति से थक चुके हैं। नौकरी, शिक्षा, सड़क, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे अब हर वर्ग के लिए अहम हैं। इसलिए सिर्फ जाति या धर्म का समीकरण अब चुनाव नहीं जिता सकता। कई लोग नीतीश कुमार से थक चुके हैं, पर RJD को लेकर भरोसा भी पूरा नहीं है। ऐसे में इस बार कुछ कहना अभी मुश्किल हो रहा है।







